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mansik tanav se bacho ko kaise bachaye

मनोवैज्ञानिक तनाव से बच्चों को कैसे बचाएं 

मनोवैज्ञानिक या मानसिक तनाव (Mental Stress) एक ऐसी स्थिति है जो न केवल बड़ों को, बल्कि बच्चों को भी प्रभावित करती है। आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में बच्चे शिक्षा, सामाजिक अपेक्षाओं, तकनीक और कई अन्य कारणों से मानसिक दबाव का सामना कर रहे हैं। यह तनाव अगर समय रहते नहीं समझा गया और दूर नहीं किया गया, तो इसका प्रभाव बच्चे के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास पर पड़ सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि माता-पिता, शिक्षक और समाज मिलकर यह सुनिश्चित करें कि बच्चों को मानसिक तनाव से कैसे बचाया जा सकता है।


मानसिक तनाव के कारण

बच्चों में मानसिक तनाव के कई कारण हो सकते हैं, जैसे:

  1. अध्ययन का दबाव: परीक्षा में अच्छे अंक लाने का दबाव, होमवर्क का बोझ, स्कूल की प्रतिस्पर्धा आदि।

  2. अभिभावकों की अपेक्षाएं: माता-पिता की अधिक अपेक्षाएं, जैसे हर विषय में अव्वल रहना या किसी विशेष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना।

  3. सोशल मीडिया और तकनीक का प्रभाव: सोशल मीडिया पर दूसरों की सफलता देखकर बच्चे खुद को कम आंक सकते हैं।

  4. पारिवारिक तनाव: घर में झगड़े, माता-पिता के बीच तनाव, या परिवार में किसी की मृत्यु से भी बच्चों पर गहरा असर पड़ सकता है।

  5. दोस्ती और साथियों का दबाव: बच्चों में दोस्ती को लेकर असुरक्षा, बदमाशी (bullying), या अकेलापन भी तनाव का कारण बनता है।


मानसिक तनाव के लक्षण

यदि बच्चा मानसिक तनाव से गुजर रहा है, तो उसमें कुछ लक्षण दिखाई दे सकते हैं:

  • नींद में कमी या अधिक नींद आना

  • चिड़चिड़ापन या गुस्सा आना

  • भूख में कमी या अधिक खाना

  • अकेले रहना पसंद करना

  • आत्म-विश्वास में कमी

  • पढ़ाई में रुचि का कम होना

  • बार-बार बीमार पड़ना (जैसे पेट दर्द, सिरदर्द आदि)

यदि ये लक्षण लगातार दिखाई दें, तो यह संकेत हो सकता है कि बच्चा मानसिक तनाव से जूझ रहा है।


बच्चों को मानसिक तनाव से बचाने के उपाय

1. खुलकर संवाद करें (Open Communication)

बच्चों से नियमित रूप से बात करें। उनसे पूछें कि वे स्कूल में कैसा महसूस करते हैं, उन्हें क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं। खुली बातचीत से बच्चे अपने मन की बातें साझा करने में झिझकते नहीं हैं और तनाव से राहत पाते हैं।

2. अपेक्षाएं वास्तविक रखें

माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों से उनकी क्षमता के अनुसार अपेक्षा करें। उन्हें यह समझाना चाहिए कि असफलता कोई अंत नहीं है, बल्कि सीखने का अवसर है।

3. शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा दें

खेल-कूद, योग, दौड़ना, साइकलिंग जैसी गतिविधियां तनाव को दूर करने में सहायक होती हैं। ये शरीर में 'हैप्पी हार्मोन' (dopamine और serotonin) का निर्माण करती हैं जो मन को प्रसन्न रखते हैं।

4. पर्याप्त नींद और पोषण दें

बच्चों को अच्छी नींद और संतुलित आहार देना जरूरी है। नींद की कमी से चिड़चिड़ापन और एकाग्रता में कमी आती है। ताजे फल, हरी सब्जियां, प्रोटीन और पानी पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए।

5. सकारात्मक माहौल बनाएं

घर का माहौल शांतिपूर्ण, सहयोगी और प्रेमपूर्ण होना चाहिए। माता-पिता के आपसी संबंध, बातचीत की भाषा और रवैया बच्चे पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

6. सोशल मीडिया और स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करें

बच्चों के मोबाइल, टीवी और इंटरनेट के उपयोग पर नजर रखें। हर दिन सीमित समय ही स्क्रीन पर बिताने दें और उन्हें वास्तविक दुनिया से जोड़ने वाले खेलों, पुस्तकों और बातचीत के लिए प्रेरित करें।

7. समय प्रबंधन सिखाएं

बच्चों को उनकी दिनचर्या तय करने में मदद करें ताकि वे पढ़ाई, खेल, आराम और मनोरंजन के लिए समय बांट सकें। समय का सही उपयोग करने से तनाव की संभावना कम होती है।

8. तुलना न करें

कभी भी अपने बच्चे की तुलना अन्य बच्चों से न करें। हर बच्चा विशेष होता है और उसकी प्रतिभा अलग होती है। तुलना से बच्चों में हीन भावना उत्पन्न होती है।

9. कला, संगीत और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करें

रंग भरना, गाना, नृत्य, कहानी लिखना, मिट्टी से कुछ बनाना आदि रचनात्मक गतिविधियां बच्चों को मानसिक राहत देती हैं और उनका तनाव दूर करने में मदद करती हैं।

10. परामर्शदाता (Counselor) की सहायता लें

यदि बच्चा गंभीर मानसिक तनाव में है, तो किसी प्रशिक्षित बाल मनोवैज्ञानिक या काउंसलर की सहायता लें। ये विशेषज्ञ बच्चे को उसकी समस्याओं से उबरने में मदद कर सकते हैं।


स्कूल की भूमिका

स्कूल बच्चों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। स्कूलों को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए:

  • शिक्षक बच्चों के व्यवहार में बदलाव को समझें और समय रहते माता-पिता को सूचित करें।

  • तनाव प्रबंधन पर विशेष कार्यशालाएं (workshops) आयोजित की जाएं।

  • बच्चों को सहनशीलता, आत्म-स्वीकृति और सहयोग की शिक्षा दी जाए।

  • विद्यार्थियों के लिए एक काउंसलर उपलब्ध हो।


समाज और समुदाय की भूमिका

समाज को यह समझना होगा कि मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है। सामुदायिक स्तर पर जागरूकता अभियान, योग शिविर, खेलकूद प्रतियोगिताएं और बाल मनोविज्ञान पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।


बच्चों को आत्मबलवान कैसे बनाएं?

  • उन्हें हर छोटी जीत पर प्रोत्साहित करें।

  • उनकी गलतियों को सीखने का अवसर बनाएं, न कि डांटने का कारण।

  • आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान को बढ़ावा देने वाले कार्यों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करें।

  • उनके मित्रों को जानें और उनका साथ समझें।


निष्कर्ष

बच्चों को मानसिक तनाव से बचाना एक सामूहिक जिम्मेदारी है जिसमें परिवार, विद्यालय और समाज की भागीदारी जरूरी है। बच्चों का बचपन चिंता और डर में नहीं, बल्कि प्रेम, समझदारी और समर्थन में बीते, यही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। अगर हम समय रहते बच्चों की समस्याओं को समझें और उन्हें संवेदनशीलता से संभालें, तो हम उन्हें एक खुशहाल, आत्मविश्वासी और मानसिक रूप से मजबूत नागरिक बना सकते हैं।

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